Friday 22 December 2017

भगवान है कहा रे तू?

ढूंढ तो लेते भगवान को हम भी कही ना कही,
पर लोगो की भीड़ इतनी थी की थक गए थे,

पर रोक दी तलाश हमने क्योंकि वो खोये नहीं हम ही भटक गए थे ।।
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खुदा को रिश्वत देकर सपनो को अलमारी मैं रख दिया हैं,

अपना भगवान खुद चुनने का जिंदगी ने शायद हमें हक़ दिया हैं ।।
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तुझे पता नहीं भगवान तुझको कितना तलाशा है मैंने,

तुझे कभी पत्थर में, तो कभी पानी में पाया है मैंने ।।
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भगवन का ख़्याल है मुझे,
धर्मो का हिसाब नहीं रखता..!!

दुवाएं दिल से निकलते है,
मैं गीता या पुराण नहीं रखता..!!
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ख़्वाब टूटे हैं
मगर हौसले अभी ज़िंदा हैंं

मैं वो शक्स हूँ,
जिससे भगवान तो रूठे है,
मागत मुश्किलें अभी शर्मिन्दा है।।
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सब काट रहे हैं यहां इक दूजे को,
लोग सभी दो धारी धनवान क्यूँ हैं?

सब को सबकी हर खबर चाहिए,
लोग चलते फिरते भगवान क्यूँ हैं ??
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जानकर भी अन्जाना बन रहा है इंसान,
उम्मीदों के लिए ही बना हुआ है ये भगवान् ।।
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कुदरत का करिश्मा तो देखो,

मौत ने दुनिया कोे कैसा कैसा समा दिखा डाला,

आखिर अंतिम में मरते ही इंसान को भगवान दिखा डाला ।।

~आशुतोष ज. दुबे

Saturday 25 November 2017

२६/११ आज भी याद है वो दिन

२६/११/२००८
हाँ मुझे याद है आज का वो दिन,

जब मुंबई के लोग मौत के कहर से डर रहे थे,
लगता है आज मेरा आखिरी दिन है यह सोच सोच कर मर रहे थे।।
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हाँ याद है वो रात,

जब मुंबई की लोकल ट्रेन मे चढ़ने से लोग डर रहे थे,
बस पहोच जाऊ घर मेरे परिवार के पास यही दुआ भगवान् से कर रहे थे ।।
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हाँ याद है मुझे वो जंग,

जब मुंबई पुलिस कसाब और उसके साथियों से लड़ रहे थे,
कुछ हिन्दू आग के लपेटे में तो कुछ मुस्लिम कब्र में गाड़ रहे थे ।।
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हाँ याद है मुझे वो समय जब,

मैं खुद दादर स्टेशन पर रुका था और मेरे पापा बार बार कॉल कर रहे थे,
मेरा बेटा आ जायेगा ना घर बस भगवान से सवालो पर सवाल कर रहे थे।।
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सिर्फ़ एक मिनट उन शहीदों के नाम,
जो कुछ कर गये मुंबई वालो के नाम।।

~आशुतोष ज. दुबे

Tuesday 21 November 2017

इंसान और इंसान की सोच

दील और दिमाग से थक चुका हूँ मैं,
समाज के कायदे और कानून से पक चूका हूँ मैं।।

खुल के जियो फिर भी समाज कहती हैं,
ना जियो तो भी समाज कहती ही है।।

अपनी अपनी सोच की बात हैं,

चाहो तो कोई कागज रद्दी या कोई कागज गीता बन जाये,
कोई पत्थर से ठोकर खाये तो कोई पत्थर भगवान बन जाये ।।

जात पात का भेदभाव यह मुद्दा बहोत गंभीर है,
समाज के लिए यही लक्ष्मन रेखा और यही लकीर है ।।

इंसानी दुनिया में खुद हो ना हो समाज सच्चा होना चाहिए,
खुद का घर कैसा भी हो समाज अच्छा होना चाहिए।।

यहाँ इंसानो का इंसानो से कोई मेल नहीं होता,
समाज के हिसाब से दो अलग जाट मिल जाये तो ये कोई खेल नहीं होता ।।

अरे मुर्ख जात भले ही अलग हो पर हर इंसान एक होता है,
उच्च नीच कुछ नहीं अगर समाज में हर एक इंसान नेक होता है ।।

जब सर-ए-कफ़न बाँध मैं समाज के खिलाफ चल पड़ा,
तब में कब्र में था और मेरे आजु बाजू हर इंसान था खड़ा।।

जीते जी कोई समझ ना पाया मुझे,
मरते ही हर इंसान समझ गया ।।
अचानक कब्र के बहार से किसी की आवाज आयी,
इंसान बुरा नहीं था, बेचारा खामोखां चला गया।।

देर हो जाये उससे पेहले ही समझ जाओ,
समाज का समाज का हिस्सा हर एक इंसान है,
और हर एक इंसान को अपनाओ ।।

सोच सोच कर दिल से निकला वही लिख पाया हूँ मैं,
ग़ालिब तो नहीं पर एक इंसान या कहो इंसान का साया हूँ मैं ।।


~आशुतोष ज. दुबे

Monday 13 November 2017

"मुंबई" एक सपनो का शहर

भारत के नक्शे पर जो एक शहर भाया था मुझे,
नाम था "मुंबई" जो अपने आप खिंचे ले आया था मुझे ।।
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सुना है बहुत बारिश होती है मुंबई शहर में,
ज़्यादा भीगना मत।।

अगर धुल गयी सारी ग़लतफ़हमियाँ,
तो शिकायत करना मत ।।
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मुंबई के ठण्ड का तो पता नहीं,
पर हवाएँ गर्म और ज़िस्म बे-लिबास था।।

मुंबई शहर के हर एक सक्श को,
इन सभी बातों का अहसास था।।
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सुना है मुंबई को सभी कहते है सपनो का शहर,
जब रह कर देखा तो पता चला ये तो है अपनों का शहर।।
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घूम गए मुंबई शहर में क्योकि कदमो कदमो पर थे देखने लायक है अच्छी जगह,
क्यों खिंचा ले आया मैं मुंबई बाद में पता चला असली और सच्ची वजह।।
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ऐ शहर के वासियो, हम गाँव से आये हैं,
कुछ देखि सुनी बातो का पैगाम लाये हैं।।
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शहर में थी रौशनी और कुछ अजीब सा था मंजर,
जब आयी काली रात फिर शहर भी दिखने लगा बंजर।।
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खामोश था शहर और चीखती रही रातें,
सब चुप थे पर कहने को थे हजार बातें...!
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शहर में कही खुले आम हो रही थी चोरियां,
और कही खुले आम छेड़ी जा रही थी छोरिया।।
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कुछ देख रहे थे, कुछ देख कर भी अंजान थे,
हर जगह पड़ी थी लाशें, कदमो कदमो पर शमशान थे ।।
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पूछा न जिंदगी में किसी ने भी दिल का हाल मेरा,
अब शहर भर में ज़िक्र मेरी खुदकुशी का है और यही है पहचान मेरा ।।
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बैठता वहीं हूँ, जहाँ अपनेपन का अहसास है मुझको,
सपनो के शहर में मिलेंगे हजारो जिनपर होगा नाज तुझको ।।
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कुछ अजीब लोगों का बसेरा है, मुंबई शहर में,
गुरूर में मिट जाते हैं, मगर बात नहीं करते।।

यहाँ शान-ओ-शौकत तो बना लोगे,
क्या हिसाब दे पाओगे की कितने बनाये थे रिश्ते ।।
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जिस शहर की रगों में कोई भी नदी नहीं बहती है,
इसका परिणाम पूरा शहर सहती है।।
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पैसो के लिए भाग दौड़ भरी शहर का दिल से कोई रिश्ता नहीं होता,
उस शहर में पैसा कमाने के अलावा दिल जीतने वाला कोई फरिश्ता नहीं होता।।
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~आशुतोष ज. दुबे✍ (९६७३४७०७३७)

Thursday 9 November 2017

भिखारी और उसके हक्क की भीख

दुनिया बहोत बड़ी है और हसीन दुनिया ये सारी है,
हसीन दुनिया में भी जो खुश न हो उसकी पहचान एक भिकारी है ।।

अकसर लोग कितना रुपया लुटा देते है पुरे दिन में,
मगर यहाँ एक रुपया भी नहीं देता कोई मुश्किल में ।।

तुम्हारे एक रूपये से मुझे कुछ न मिल जायेगा खाने को,
पर बहोत सारे एक रुपया जमा कर उम्मीद कर सकता हु कुछ पाने को ।।

ना दे सको पैसा तो देदो बस कुछ खाने को,
असली भिखारी तो वही है जो मोहताज हो दाने दाने को ।।

हसीन दुनिया की भी एक बहोत बड़ी आबादी है,
पैर हाथ होकर जो भिक मांगे उसका जिंदगी में होना भी एक बरबादी है ।।

माना कि औरों की मुकाबले कुछ ज्यादा पाया नहीं मैंने,
पर खुश हूं कि खुद को गिरा कर कुछ उठाया नही मैंने

पहचान सही भिकारी को, एक भिकारी को तुझसे यही है आँस,
वरना कदम कदम पर भिकारी है तुम्हारे आस पास ।।

भीख मांगना मेरा कोई शौख नहीं बस मेरी एक मज़बूरी है,
दाने दाने का मोहताज हूँ और दाने से ही मेरी दुरी है ।।

एक भिखारी की पूरी जिंदगी निकल जाती है, कतरा कतरा जुटाने में,
वही भिखारी अगर आपसे भीख मांगले तो आपको कोई कसर नहीं छोड़ते सुनाने में ।।

सर को उठाकर चलने वालो एक दिन ठोकर खाओगे,
दान करना सिखलो ऊपर कुछ न ले जा पाओगे।।

खर्च कर देते हो कई रुपये अपने शौक मिटाने को,
दान करो उसे जो जरुरत मंद हो, यही संदेश देना चाहता हु जमाने को ।।

आशुतोष ज. दुबे

Sunday 5 November 2017

माँ...

मंजिल यूँ ही नहीं मिलती आज कल के बच्चो को,
माँ को जुनून सा दिल में जगाना पड़ता है।।

पूछा चिड़िया से, कि बच्चो के लिए घोसला कैसे बनता है?
वो बोली कि तिनका तिनका उठाना पड़ता है।।

तभी मन में एक सवाल आया की आखिर क्या होती है माँ?
मन भी भड़क उठा और बोला जब तक तू न खाले तब तक ना सोती है ये माँ।।

तुझे इतना बड़ा कर माँ ने अब तक क्या पाया है?
खुद के सपनो को दबाकर उसने तुझे बनाया हैं।।

जिस घर में कभी माँ और बाप की ना बनी है,
उस घर में बच्चे ही माँ के जीने का सहारा बनी है।।

माँ को प्यार दो क्योकि माँ का प्यार तो हर कोई पाता हैं,
याद रखना गुजर गया जो वक्त वो कभी न आता है।।

दुनिया में आज भी कई लोग तड़प रहे है, उस माँ की थोड़ी ममता पाने को,
और आप इतने बड़े हो गए की बात करते हो माँ को वृद्धाआश्रम ले जाने को ।।

वृद्धाआश्रम में बैठी हु माँ ने भी कभी न सोचा कब आएगा मेरा बेटा मुझे वापस ले जाने को,
उस माँ ने बस एक ही सोचा की मेरा बेटा कैसा होगा क्या होगा उसके पास खाने को।।

एक माँ है वो जिसने ९ महीने दर्द सेहः कर पाला है तुझे,
तिनका तिनका जमा कर उसने कैसे कैसे सवारा है तुझे।।

वक्त भी आगे बढ़ता गया, साथ बच्चे भी बड़े हो गए,
माँ ने कर ही दिखाया  और बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए।।

वक्त के साथ माँ भी बूढी हो गई और उसकी उम्र भी आधी हो गई,
माँ ने बच्चो को इतना बड़ा किया कि बच्चो की शादी भी हो गयी।।

माँ के दिल में एक ही अरमान था,
बच्चा बड़ा होगा तो उसके सहारे की लाठी बनेगा,
पर उसे न पता था वो शादी के बाद अपने सिर्फ अपने पत्नी का साथी बनेगा ।।

माँ का शरीर भी दिया जवाब और वो हो गयी बीमार,
दिल में आस था मेरा बेटा आएगा मेरी तबियत पूछेगा एकबार ।।

कमा धमा कर बेटा घर तो आया पर सीधे घर में घुस गया,
चलो सोचा थका होगा खा पीकर आएगा पर, उसके कमरे का दिया भी बुझ गया।।

फिर भी माँ की उम्मीद न टूटी ना ही उसने मन में कुछ सोची,
हा पर दिल तो नाजुक होता है दिल में थोड़ी सी ठेस जरूर पोहची ।।

देखते देखते वक्त गुजरते चले जा रहा था,
माँ और बूढी और बेटा और जवान होते जा रहा था।।

एक माँ क्या चाहती है?
ख़ुशी के दो बूंद आंसू और उसके हक्क के सम्मान,
न की दुखी के आंसू और रोज रोज का अपमान ।।

आगे की बाते सोच कर भी अजीब लगता है,
माँ का प्यार पाने के लिए भी नसीब लगता है ।।

ना जाने ये वक्त दोबारा मिले या ना मिले,
जबतक वो साथ है, दे दो उसे दुनिया भर की खुशियां और दुनिया भर का प्यार,
आज वक्त तेरे साथ है कल ये वक्त साथ हो ना हो मान ले मेरे यार ।।

-आशुतोष ज. दुबे

Friday 3 November 2017

सबसे बड़ा "नसीब"

ये मेरा है, वो तेरा है - क्यों करते हो प्यारे,
तू-तू मैं-मैं के आग में आज जल रहे है सारे।।

लाखो मेहनत के बाद भी अगर किस्मत सोता है,
तो मानले एक बात सबसे बड़ा तो नसीब ही होता है।।

जहाँ कोशिशों का कद बड़ा होता हैं,
वहाँ नसीबो को भी झुकना पड़ता हैं ।।

जिस मनुष्य ने इस बात को समझ लिया,
वह मनुष्य ही आगे बढ़ता है।।

जिस इंसान ने ये सोच लिया,
उसका नसीब अच्छा है, मेरा नसीब तो ख़राब है,
नसीब को कोसने वालो जरा झांक के देखलो आपके मन में ही पाप है ।।

नसीब कभी किसी के साथ भेद भाव नहीं करती,
नसीब जिसने खुद बनाया वहां नसीब भी आने से नहीं डरती ।।

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है,
औकात तो तुमने अपनी खुद बनायीं वरना मिटटी में बैठने के लिए भी नसीब लगती है ।।

अगर तुम सोचते हो वो तो बहोत अमीर है, पर वो बेचारा बहोत गरीब है,
मुरख इतना समझ गया पर ये न समझ पाया कि सबसे बड़ा तो नसीब है ।।

वरना आमिर तो वो भी होता है जिसे २ वक्त की रोटी भी खाने को समय नहीं होता है,
और गरीब तो वो भी होता है जो लाखो मेहनत कर २ रोटी खाने का उसे ही नसीब होता है ।।

जाते जाते फिर दोहराता हूँ,
जहाँ कोशिशों का कद बड़ा होता हैं,
वहाँ नसीबो को भी झुकना पड़ता हैं ।।

आशुतोष ज. दुबे ।।

Tuesday 31 October 2017

हाँ मैं एक चाय हूँ ☕

क्या आपको चाय से बेहद प्यार है??
चलो आपको चाय के बारे कुछ देखी सुनी बाते बताता हूँ ।।☕❤

रिश्तों का मेल जोल भी कितना अजीब होता है,
दो अजनबी रिश्तों को मिलाने वाला भी एक "चाय" होता है ।।☕

भीड़ भरी दुनिया में कोई जिंदगी भर साथ देता है,
या कोई यु बिच डगर में ही साथ छोड़ देता है,

फिर एक शाम चाय अपनी जगह लेता है,
और एक चुस्की चाय सारे गम भुला देता है।।☕

मैं एक चाय हूँ,
जुल्मत में भी मुस्कराऊंगा,
ऐ इंसान मुझे सम्भाल कर रखना,
मैं वक्त पर हमेशा काम आऊंगा ।।

अरे !! पर चाय का साथ कहा तक है???

तो सुनो...

दो दिल मिल रहे है,
पर चाय साथ में है।।😍

पैसो का लें देन हो रहा है,
चाय का साथ उस वक्त भी होता है ।।😮

नेता और राजनेता चुप छुपा कर घोटाले कर रहे है,
चाय उस समय भी होता है।।😆

पढाई करते करते नींद आ जाये,
तो भी चाय साथ ही है ।।📚

रेल गाड़ी का लंबा समय काट रहे हो,
बस चाय का ही साथ है ।।😂

बेरोजगारी की चिंता है,
पर चाय आपके साथ है।।☕

कामयाबी नहीं मिल रही,
फिर भी चाय आपके साथ है।।☕

दोस्त, दुनिया या परिवार ने आपका साथ छोड़ दिया,
पर अब भी चाय आपके साथ है।।☕

प्रेमिका ने आपका साथ छोड़ दिया,
अरे ये क्या आज भी चाय आपके साथ ही है ।।☕

याद रखना....🙌

जिंदगी में पत्नी सात जन्मों का साथ दे या न दे,
पर एक चाय आपका सात जन्मो तक साथ देगी,😂
और...
बेरोजगारी और नाकामयाबी के वक्त दुनिया बहोत ताने मारेगी,
इन सब तानो से थक कर आपकी थकान मिटाने के लिए "चाय" ही अपना जगह लेगी।।☕

ये सब सुनते सुनते "चाय" बी बोल पड़ा,
"मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ ।।"

एक इंसान भले ही एक इंसान को ना परख पाये,
मैं हर तरह के इंसान को परखता हु ।।

एक इंसान ही इंसान को दुनिया भर के तकलीफ देता है,
पर मेरी एक चुस्की जब इंसान लेता है,
पल भर के लिए ही सही पर सारी तकलीफे मिटा देता है ।।

हाँ मैं एक चाय हूँ,
पर सच में खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
थोड़ा सा गर्म और लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ ।।

हाँ मैं एक चाय हूँ...

- आशुतोष ज. दुबे 

Sunday 29 October 2017

अमिरी और रईसी बस एक शब्द है

जिंदगी में जरूरते तो बड़ी बड़ी है पर सामान्य जरुरत तो घर, कपडा और माकन है,
इन सब जरूरतों को मिटाने के लिए एक पैसा रुपया ही सबसे बड़ा जान है ।।

हम सब यहाँ मुसाफिर है और सबसे अमीर तो वो दानी है,
बस हमें चार दिन ही जीना है और यही जिंदगानी है ।।

लोगो ने क्या खूब कहा है, बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया!
अंतिम समय में ना काम आएंगे ये लोग ना काम आएगा ये रुपैया,
काम आएंगे तो अपने बाप और बड़े भैया ।।

इंसान नीचे बैठा दौलत गिनता है,
कल इतनी थी – आज इतनी बढ गयी ।।
ऊपर वाला हंसता है और इंसान की सांसे गिनता है,
कल इतनी थीं – आज इतनी घट गयीं ।।

हुवे थे नाम वाले भी बे निशान कैसे कैसे,
पर जमी खा गयी नौ जवान कैसे कैसे ।।

अमिरी और रईसी से बस इतना पता चलता है कि, इंसान के पास कितना ज्यादा रुपैया है कितनी बड़ी दौलत है,
न की ये पता चलता है, वो कितना अच्छा इंसान है और उसका कितना बड़ा दिल है ।।

दुनिया में ९०% लोग अपना जीवन सिर्फ पैसे कमाने और आमिर बनने में लगा देते है,
उनमे से १०% लोग अपना जीवन सिर्फ कमाये हुवे पैसो से किसी जिंदगी अच्छी बनाने में लगा देते है ।।

अंतिम समय पर,
घर, जमीन, जेवर, दौलत, पैसा और रुपैया कुछ साथ नहीं जायेगा,
इंसान खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जायेगा ।।

("इंसान" शब्द तो एक ही है पर लोग तरह तरह के है आप की जगह कहा है आप खुद निर्णय ले )

आशुतोष ज. दुबे



Saturday 28 October 2017

एक रिश्ता सोच और समाज का

दुनिया एक रंग मंच है,
और इस रंग मंच का सबसे बड़ा खिलाडी समाज है,
उनमे से कुछ लोग ही अच्छी सोच रखते है और उन्ही पर मुझे नाज़ है ।।

अगर आप खुले विचार और खुले दिल के हो समाज के बीच आप बहोत बुरे हो,
इस तरह समाज बन जाता मदारी और आप बंदर मदारी के जमूरे हो ।।

अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे,
जिसकी  जितनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।।

दूनीया चली देश बदलने मगर अपनी सोच न बदल पाये,
अगर खुद की सोच ही बदल दे तो देश अपने आप बदल जाये ।।

हज़ारो अच्छे काम भी किये मगर समाज को कभी नज़र न आया,
अच्छे होने के बावजूद समाज ने हमेशा गलत ही ठहराया ।।

इस रंगीन दुनिया के बसेरे में
पता नही कितने दिन रहना है,
जीत लें सबके दिलों को,
बस यही जीवन का गहना है।।

जाते जाते एक ही बात कहना है,

इस रंग मंच का सबसे बड़ा खिलाडी समाज है,
समाज में सबसे बड़ा खिलाडी उनकी सोच है,
अब आप पर निर्भर करता है आप क्या देखकर आगे बढ़ोगे समाज या सोच ??

आशुतोष ज. दुबे 

Thursday 26 October 2017

आस पास से मिलने वाली ख़ुशी


खुशिया ढूंढो मत यह तो हमेशा आस पास ही होती है,
कभी कभी दुसरो को ख़ुशी देने में सबसे बड़ी खुशी चुपी होती है।।

यदि आप के चंद मीठे बोलों से किसी का रक्त बढ़ता है तो यह भी रक्त दान हैं,
तो यु ही हमेशा रक्तदान कर दिया करो ।।

चंद लम्हो की है ज़िन्दगी बिन मांगे ही किसी ना किसी को ख़ुशी दे दिया करो।।

गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हे हमेशा,
यूं ही मुसाफिरों की तरह ।।
यादें वहीं खडी रह जाती हैं हमेशा,
रूके रास्तों की तरह ।।

फिर कुछ अपने पीछे छूट जाते है,
या कुछ हमें खुद पीछे छोड़ जाते है,
और जलती हुई दिया भी बुझ जाती है।।

एक उम्र के बाद - उस उम्र की बातें - उम्र भर याद आती हैं,
पर वह उम्र - फिर उम्र भर - नहीं आती है ।।

वसीयत में "यादों" के अलावा कुछ नहीं बचता,
फिर वही यादे याद आती है।।

इसलिए फिर से केहता हूँ,
चंद लम्हो की है ज़िन्दगी बिन मांगे ही किसी ना किसी को ख़ुशी दे दिया करो।।

यही सबसे बड़ा रक्तदान है,
बिना खून दिये महा रक्तदान दिया करो ।।
-आशुतोष ज. दुबे

(आप भी, कभी हंस भी लिया करो😃)

Wednesday 25 October 2017

गरीबी एक व्यहम है

बून्द बून्द से घड़ा भरने की कोशिश कर रहा था,
पर दाने दाने ने पैसो का मोहताज बना डाला।।

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला।।

लोग कहते है,
अमीर और अमीर, गरीब और गरीब बनते जा रहा है,

जब घर में आकर परिवार के साथ दो रोटी सकूँ से खाया,
तब समझ आया अमीर और गरीब , गरीब और आमीर बनते जा रहा है।।

ये बात तब समझ आयी जब पैसे कमाने के लिए बहार निकल आया,
पैसे कमाते कमाते परिवार को कही दूर छोड़ आया।।

फिर ये एहसास भी हुआ,
सबसे बड़ा अमीर तो वो है जिसके पास हँसता खेलता परिवार है,
ना की वो जिसने परिवार से अलग हो कर कमाये मोटर गाड़ी कार है।।

हँसते हँसते एक गरीब आज बोल पड़ा
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी  कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं,  और साल गुज़रते चले जा रहे  हैं।।

फिर से आमिर और अमीर, गरीब और गरीब बनते जा रहे है।।
(यहाँ अमीर की परिभाषा गरीब ने बदल दी है, 
समझ में आयी हो कविता तो comment के जरिये जरूर बताये)

आशुतोष ज. दुबे

Tuesday 24 October 2017

खोयी हुई इंसानियत


शहर के भीड़ में कही घूम सा गया हूं मैं,
खुद को ढूंड कर अब ऊब सा गया हूं मैं।।

ऊँची है इमारते , ऊँचे है लोग,
बड़ा सा है दिल, पर छोटी सी है सोच।।

जीवन की भाग-दौड़ में
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
साली हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी बहोत आम हो जाती है।।

बड़ी बड़ी इमारतों में कही चिड़िया का घोसला नजर आया,
उन चिडयो के साथ खेलता एक इन्सान नजर आया।।

वो इन्सान भी क्या इन्सान था जिसने खुद का घर तो बसाया,
साथ ही उन चिडयो को पनाह देकर इंसानियत दिखाया,

बात तो १००% की है,
इंसान तो हर घर में पैदा होता है,
पर इंसानियत कही कही पैदा होती है ।।

-आशुतोष ज. दुबे