भारत के नक्शे पर जो एक शहर भाया था मुझे,
नाम था "मुंबई" जो अपने आप खिंचे ले आया था मुझे ।।
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सुना है बहुत बारिश होती है मुंबई शहर में,
ज़्यादा भीगना मत।।
अगर धुल गयी सारी ग़लतफ़हमियाँ,
तो शिकायत करना मत ।।
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मुंबई के ठण्ड का तो पता नहीं,
पर हवाएँ गर्म और ज़िस्म बे-लिबास था।।
मुंबई शहर के हर एक सक्श को,
इन सभी बातों का अहसास था।।
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सुना है मुंबई को सभी कहते है सपनो का शहर,
जब रह कर देखा तो पता चला ये तो है अपनों का शहर।।
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घूम गए मुंबई शहर में क्योकि कदमो कदमो पर थे देखने लायक है अच्छी जगह,
क्यों खिंचा ले आया मैं मुंबई बाद में पता चला असली और सच्ची वजह।।
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ऐ शहर के वासियो, हम गाँव से आये हैं,
कुछ देखि सुनी बातो का पैगाम लाये हैं।।
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शहर में थी रौशनी और कुछ अजीब सा था मंजर,
जब आयी काली रात फिर शहर भी दिखने लगा बंजर।।
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खामोश था शहर और चीखती रही रातें,
सब चुप थे पर कहने को थे हजार बातें...!
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शहर में कही खुले आम हो रही थी चोरियां,
और कही खुले आम छेड़ी जा रही थी छोरिया।।
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कुछ देख रहे थे, कुछ देख कर भी अंजान थे,
हर जगह पड़ी थी लाशें, कदमो कदमो पर शमशान थे ।।
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पूछा न जिंदगी में किसी ने भी दिल का हाल मेरा,
अब शहर भर में ज़िक्र मेरी खुदकुशी का है और यही है पहचान मेरा ।।
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बैठता वहीं हूँ, जहाँ अपनेपन का अहसास है मुझको,
सपनो के शहर में मिलेंगे हजारो जिनपर होगा नाज तुझको ।।
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कुछ अजीब लोगों का बसेरा है, मुंबई शहर में,
गुरूर में मिट जाते हैं, मगर बात नहीं करते।।
यहाँ शान-ओ-शौकत तो बना लोगे,
क्या हिसाब दे पाओगे की कितने बनाये थे रिश्ते ।।
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जिस शहर की रगों में कोई भी नदी नहीं बहती है,
इसका परिणाम पूरा शहर सहती है।।
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पैसो के लिए भाग दौड़ भरी शहर का दिल से कोई रिश्ता नहीं होता,
उस शहर में पैसा कमाने के अलावा दिल जीतने वाला कोई फरिश्ता नहीं होता।।
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~आशुतोष ज. दुबे✍ (९६७३४७०७३७)
नाम था "मुंबई" जो अपने आप खिंचे ले आया था मुझे ।।
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सुना है बहुत बारिश होती है मुंबई शहर में,
ज़्यादा भीगना मत।।
अगर धुल गयी सारी ग़लतफ़हमियाँ,
तो शिकायत करना मत ।।
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मुंबई के ठण्ड का तो पता नहीं,
पर हवाएँ गर्म और ज़िस्म बे-लिबास था।।
मुंबई शहर के हर एक सक्श को,
इन सभी बातों का अहसास था।।
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सुना है मुंबई को सभी कहते है सपनो का शहर,
जब रह कर देखा तो पता चला ये तो है अपनों का शहर।।
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घूम गए मुंबई शहर में क्योकि कदमो कदमो पर थे देखने लायक है अच्छी जगह,
क्यों खिंचा ले आया मैं मुंबई बाद में पता चला असली और सच्ची वजह।।
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ऐ शहर के वासियो, हम गाँव से आये हैं,
कुछ देखि सुनी बातो का पैगाम लाये हैं।।
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शहर में थी रौशनी और कुछ अजीब सा था मंजर,
जब आयी काली रात फिर शहर भी दिखने लगा बंजर।।
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खामोश था शहर और चीखती रही रातें,
सब चुप थे पर कहने को थे हजार बातें...!
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शहर में कही खुले आम हो रही थी चोरियां,
और कही खुले आम छेड़ी जा रही थी छोरिया।।
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कुछ देख रहे थे, कुछ देख कर भी अंजान थे,
हर जगह पड़ी थी लाशें, कदमो कदमो पर शमशान थे ।।
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पूछा न जिंदगी में किसी ने भी दिल का हाल मेरा,
अब शहर भर में ज़िक्र मेरी खुदकुशी का है और यही है पहचान मेरा ।।
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बैठता वहीं हूँ, जहाँ अपनेपन का अहसास है मुझको,
सपनो के शहर में मिलेंगे हजारो जिनपर होगा नाज तुझको ।।
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कुछ अजीब लोगों का बसेरा है, मुंबई शहर में,
गुरूर में मिट जाते हैं, मगर बात नहीं करते।।
यहाँ शान-ओ-शौकत तो बना लोगे,
क्या हिसाब दे पाओगे की कितने बनाये थे रिश्ते ।।
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जिस शहर की रगों में कोई भी नदी नहीं बहती है,
इसका परिणाम पूरा शहर सहती है।।
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पैसो के लिए भाग दौड़ भरी शहर का दिल से कोई रिश्ता नहीं होता,
उस शहर में पैसा कमाने के अलावा दिल जीतने वाला कोई फरिश्ता नहीं होता।।
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~आशुतोष ज. दुबे✍ (९६७३४७०७३७)
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