Thursday 9 November 2017

भिखारी और उसके हक्क की भीख

दुनिया बहोत बड़ी है और हसीन दुनिया ये सारी है,
हसीन दुनिया में भी जो खुश न हो उसकी पहचान एक भिकारी है ।।

अकसर लोग कितना रुपया लुटा देते है पुरे दिन में,
मगर यहाँ एक रुपया भी नहीं देता कोई मुश्किल में ।।

तुम्हारे एक रूपये से मुझे कुछ न मिल जायेगा खाने को,
पर बहोत सारे एक रुपया जमा कर उम्मीद कर सकता हु कुछ पाने को ।।

ना दे सको पैसा तो देदो बस कुछ खाने को,
असली भिखारी तो वही है जो मोहताज हो दाने दाने को ।।

हसीन दुनिया की भी एक बहोत बड़ी आबादी है,
पैर हाथ होकर जो भिक मांगे उसका जिंदगी में होना भी एक बरबादी है ।।

माना कि औरों की मुकाबले कुछ ज्यादा पाया नहीं मैंने,
पर खुश हूं कि खुद को गिरा कर कुछ उठाया नही मैंने

पहचान सही भिकारी को, एक भिकारी को तुझसे यही है आँस,
वरना कदम कदम पर भिकारी है तुम्हारे आस पास ।।

भीख मांगना मेरा कोई शौख नहीं बस मेरी एक मज़बूरी है,
दाने दाने का मोहताज हूँ और दाने से ही मेरी दुरी है ।।

एक भिखारी की पूरी जिंदगी निकल जाती है, कतरा कतरा जुटाने में,
वही भिखारी अगर आपसे भीख मांगले तो आपको कोई कसर नहीं छोड़ते सुनाने में ।।

सर को उठाकर चलने वालो एक दिन ठोकर खाओगे,
दान करना सिखलो ऊपर कुछ न ले जा पाओगे।।

खर्च कर देते हो कई रुपये अपने शौक मिटाने को,
दान करो उसे जो जरुरत मंद हो, यही संदेश देना चाहता हु जमाने को ।।

आशुतोष ज. दुबे

2 comments: