Tuesday 31 October 2017

हाँ मैं एक चाय हूँ ☕

क्या आपको चाय से बेहद प्यार है??
चलो आपको चाय के बारे कुछ देखी सुनी बाते बताता हूँ ।।☕❤

रिश्तों का मेल जोल भी कितना अजीब होता है,
दो अजनबी रिश्तों को मिलाने वाला भी एक "चाय" होता है ।।☕

भीड़ भरी दुनिया में कोई जिंदगी भर साथ देता है,
या कोई यु बिच डगर में ही साथ छोड़ देता है,

फिर एक शाम चाय अपनी जगह लेता है,
और एक चुस्की चाय सारे गम भुला देता है।।☕

मैं एक चाय हूँ,
जुल्मत में भी मुस्कराऊंगा,
ऐ इंसान मुझे सम्भाल कर रखना,
मैं वक्त पर हमेशा काम आऊंगा ।।

अरे !! पर चाय का साथ कहा तक है???

तो सुनो...

दो दिल मिल रहे है,
पर चाय साथ में है।।😍

पैसो का लें देन हो रहा है,
चाय का साथ उस वक्त भी होता है ।।😮

नेता और राजनेता चुप छुपा कर घोटाले कर रहे है,
चाय उस समय भी होता है।।😆

पढाई करते करते नींद आ जाये,
तो भी चाय साथ ही है ।।📚

रेल गाड़ी का लंबा समय काट रहे हो,
बस चाय का ही साथ है ।।😂

बेरोजगारी की चिंता है,
पर चाय आपके साथ है।।☕

कामयाबी नहीं मिल रही,
फिर भी चाय आपके साथ है।।☕

दोस्त, दुनिया या परिवार ने आपका साथ छोड़ दिया,
पर अब भी चाय आपके साथ है।।☕

प्रेमिका ने आपका साथ छोड़ दिया,
अरे ये क्या आज भी चाय आपके साथ ही है ।।☕

याद रखना....🙌

जिंदगी में पत्नी सात जन्मों का साथ दे या न दे,
पर एक चाय आपका सात जन्मो तक साथ देगी,😂
और...
बेरोजगारी और नाकामयाबी के वक्त दुनिया बहोत ताने मारेगी,
इन सब तानो से थक कर आपकी थकान मिटाने के लिए "चाय" ही अपना जगह लेगी।।☕

ये सब सुनते सुनते "चाय" बी बोल पड़ा,
"मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ ।।"

एक इंसान भले ही एक इंसान को ना परख पाये,
मैं हर तरह के इंसान को परखता हु ।।

एक इंसान ही इंसान को दुनिया भर के तकलीफ देता है,
पर मेरी एक चुस्की जब इंसान लेता है,
पल भर के लिए ही सही पर सारी तकलीफे मिटा देता है ।।

हाँ मैं एक चाय हूँ,
पर सच में खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
थोड़ा सा गर्म और लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ ।।

हाँ मैं एक चाय हूँ...

- आशुतोष ज. दुबे 

Sunday 29 October 2017

अमिरी और रईसी बस एक शब्द है

जिंदगी में जरूरते तो बड़ी बड़ी है पर सामान्य जरुरत तो घर, कपडा और माकन है,
इन सब जरूरतों को मिटाने के लिए एक पैसा रुपया ही सबसे बड़ा जान है ।।

हम सब यहाँ मुसाफिर है और सबसे अमीर तो वो दानी है,
बस हमें चार दिन ही जीना है और यही जिंदगानी है ।।

लोगो ने क्या खूब कहा है, बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया!
अंतिम समय में ना काम आएंगे ये लोग ना काम आएगा ये रुपैया,
काम आएंगे तो अपने बाप और बड़े भैया ।।

इंसान नीचे बैठा दौलत गिनता है,
कल इतनी थी – आज इतनी बढ गयी ।।
ऊपर वाला हंसता है और इंसान की सांसे गिनता है,
कल इतनी थीं – आज इतनी घट गयीं ।।

हुवे थे नाम वाले भी बे निशान कैसे कैसे,
पर जमी खा गयी नौ जवान कैसे कैसे ।।

अमिरी और रईसी से बस इतना पता चलता है कि, इंसान के पास कितना ज्यादा रुपैया है कितनी बड़ी दौलत है,
न की ये पता चलता है, वो कितना अच्छा इंसान है और उसका कितना बड़ा दिल है ।।

दुनिया में ९०% लोग अपना जीवन सिर्फ पैसे कमाने और आमिर बनने में लगा देते है,
उनमे से १०% लोग अपना जीवन सिर्फ कमाये हुवे पैसो से किसी जिंदगी अच्छी बनाने में लगा देते है ।।

अंतिम समय पर,
घर, जमीन, जेवर, दौलत, पैसा और रुपैया कुछ साथ नहीं जायेगा,
इंसान खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जायेगा ।।

("इंसान" शब्द तो एक ही है पर लोग तरह तरह के है आप की जगह कहा है आप खुद निर्णय ले )

आशुतोष ज. दुबे



Saturday 28 October 2017

एक रिश्ता सोच और समाज का

दुनिया एक रंग मंच है,
और इस रंग मंच का सबसे बड़ा खिलाडी समाज है,
उनमे से कुछ लोग ही अच्छी सोच रखते है और उन्ही पर मुझे नाज़ है ।।

अगर आप खुले विचार और खुले दिल के हो समाज के बीच आप बहोत बुरे हो,
इस तरह समाज बन जाता मदारी और आप बंदर मदारी के जमूरे हो ।।

अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे,
जिसकी  जितनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।।

दूनीया चली देश बदलने मगर अपनी सोच न बदल पाये,
अगर खुद की सोच ही बदल दे तो देश अपने आप बदल जाये ।।

हज़ारो अच्छे काम भी किये मगर समाज को कभी नज़र न आया,
अच्छे होने के बावजूद समाज ने हमेशा गलत ही ठहराया ।।

इस रंगीन दुनिया के बसेरे में
पता नही कितने दिन रहना है,
जीत लें सबके दिलों को,
बस यही जीवन का गहना है।।

जाते जाते एक ही बात कहना है,

इस रंग मंच का सबसे बड़ा खिलाडी समाज है,
समाज में सबसे बड़ा खिलाडी उनकी सोच है,
अब आप पर निर्भर करता है आप क्या देखकर आगे बढ़ोगे समाज या सोच ??

आशुतोष ज. दुबे 

Thursday 26 October 2017

आस पास से मिलने वाली ख़ुशी


खुशिया ढूंढो मत यह तो हमेशा आस पास ही होती है,
कभी कभी दुसरो को ख़ुशी देने में सबसे बड़ी खुशी चुपी होती है।।

यदि आप के चंद मीठे बोलों से किसी का रक्त बढ़ता है तो यह भी रक्त दान हैं,
तो यु ही हमेशा रक्तदान कर दिया करो ।।

चंद लम्हो की है ज़िन्दगी बिन मांगे ही किसी ना किसी को ख़ुशी दे दिया करो।।

गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हे हमेशा,
यूं ही मुसाफिरों की तरह ।।
यादें वहीं खडी रह जाती हैं हमेशा,
रूके रास्तों की तरह ।।

फिर कुछ अपने पीछे छूट जाते है,
या कुछ हमें खुद पीछे छोड़ जाते है,
और जलती हुई दिया भी बुझ जाती है।।

एक उम्र के बाद - उस उम्र की बातें - उम्र भर याद आती हैं,
पर वह उम्र - फिर उम्र भर - नहीं आती है ।।

वसीयत में "यादों" के अलावा कुछ नहीं बचता,
फिर वही यादे याद आती है।।

इसलिए फिर से केहता हूँ,
चंद लम्हो की है ज़िन्दगी बिन मांगे ही किसी ना किसी को ख़ुशी दे दिया करो।।

यही सबसे बड़ा रक्तदान है,
बिना खून दिये महा रक्तदान दिया करो ।।
-आशुतोष ज. दुबे

(आप भी, कभी हंस भी लिया करो😃)

Wednesday 25 October 2017

गरीबी एक व्यहम है

बून्द बून्द से घड़ा भरने की कोशिश कर रहा था,
पर दाने दाने ने पैसो का मोहताज बना डाला।।

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला।।

लोग कहते है,
अमीर और अमीर, गरीब और गरीब बनते जा रहा है,

जब घर में आकर परिवार के साथ दो रोटी सकूँ से खाया,
तब समझ आया अमीर और गरीब , गरीब और आमीर बनते जा रहा है।।

ये बात तब समझ आयी जब पैसे कमाने के लिए बहार निकल आया,
पैसे कमाते कमाते परिवार को कही दूर छोड़ आया।।

फिर ये एहसास भी हुआ,
सबसे बड़ा अमीर तो वो है जिसके पास हँसता खेलता परिवार है,
ना की वो जिसने परिवार से अलग हो कर कमाये मोटर गाड़ी कार है।।

हँसते हँसते एक गरीब आज बोल पड़ा
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी  कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं,  और साल गुज़रते चले जा रहे  हैं।।

फिर से आमिर और अमीर, गरीब और गरीब बनते जा रहे है।।
(यहाँ अमीर की परिभाषा गरीब ने बदल दी है, 
समझ में आयी हो कविता तो comment के जरिये जरूर बताये)

आशुतोष ज. दुबे

Tuesday 24 October 2017

खोयी हुई इंसानियत


शहर के भीड़ में कही घूम सा गया हूं मैं,
खुद को ढूंड कर अब ऊब सा गया हूं मैं।।

ऊँची है इमारते , ऊँचे है लोग,
बड़ा सा है दिल, पर छोटी सी है सोच।।

जीवन की भाग-दौड़ में
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
साली हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी बहोत आम हो जाती है।।

बड़ी बड़ी इमारतों में कही चिड़िया का घोसला नजर आया,
उन चिडयो के साथ खेलता एक इन्सान नजर आया।।

वो इन्सान भी क्या इन्सान था जिसने खुद का घर तो बसाया,
साथ ही उन चिडयो को पनाह देकर इंसानियत दिखाया,

बात तो १००% की है,
इंसान तो हर घर में पैदा होता है,
पर इंसानियत कही कही पैदा होती है ।।

-आशुतोष ज. दुबे