Tuesday 13 November 2018

बचपन जिन्दा हैं

एक जमाना था मम्मी सुबह डाँट डाँट कर उठाती थी,
आज मुझे अलार्म के सहारे उठना पड़ता है।।

एक जमाना था बहला फुसलाकर मम्मी अपने हाथों से खिलाती थी,
अब रोज खुद के हाथों से खाना पड़ता है।।

माँ बाप का प्यार तो अजर अमर है कम थोड़ी ना होता है,
हर इंसान बड़े होने के बाद वो बचपन का प्यार जरूर खोता है ।।

बचपन में मम्मी पापा चिल्ला दे तो उनकी बातें सुन हम रो पड़ते थे,
बड़े होते ही उनके चिल्लाते ही हम चिल्लादेते है,
अब वो रो पड़ते हैं।।

इंसान भले ही बड़ा हो जाये मगर बचपना कही नहीं जाती,
दिल बच्चा हो तो बचपन की याद भी नहीं आती।।

कभी खुद बच्चा बन वापस मम्मी पापा के सामने बच्चे बन जाया करो,
उनको खुशिया देकर खुद को भी खुश पाया करो ।।

~आशुतोष ज. दुबे

Friday 22 June 2018

बाप

माँ पर तो सभी दो चार पंक्तिया लिखते है,
बाप पर कोई लिखे वो बहोत काम दीखते है।।

आखिर क्या होता है ये 'बाप' ?

बाप है तो घर का सारा व्यव्हार आसानी से चलता है,
घर का व्यवहार आसानी से चले इसलिए वो दिनभर धुप में जलता है ।।

माँ तो प्यार जता देती है,
बाप प्यार जता नहीं पाता,
प्यार तो बाप भी करता है,
बस वो आपको बता नहीं पाता ।।

बाप है तो माँ की चूड़ी, साड़ी, श्रृंगार और सुहाग है,
बाप ना हो तो माँ के टूटते उम्मीदों का जलता आग है ।।

बाप है तो रोटी, कपडा और मकान है,
उसका साथ ही बस खुशियो का दुकान है ।।

बाप है तो याद रखना बच्चो के सारे सपने अपने होते है,
सपने तो जिन्दा रेहते है पर बिना बाप सपने बस सपने होते है ।।

बाप है तो समाज और दुनिया भी हमें देखती है,
बाप ना हो तो गर्म तवे पर यही समाज हाथ सेकती है ।।

बाप का दर्जा ही अलग होता है इस ब्रह्मांड में,
बाप के वजह से हम है और सभी है इस संसार में ।।

बाप है तो बेटी की बिदाई पर रोने के लिए बाप का कन्धा है,
बाप के ना होने पर जो आँखे उनका एहसास ना कर पाए वो आँख भी अँधा है ।।

बाप एकमेव ऐसा रिश्ता और बंधन है जो छुटे नहीं छोड़ पायेगी,
नाम के आगे लगने वाला बाप का नाम, जिंदगी भर उनके होने का एहसास दिलाएगी ।।

बाप से है हम और है ये दुनिया सारी,
आप अपनी राय दे अब आप की बारी ।।

~आशुतोष ज. दुबे 

Tuesday 17 April 2018

घर बैठी दूसरी आसिफा

#justiceforaasifa
विश्वास टूट सा गया है मेरा,
क्योकि मैं घर में बैठी दूसरी आसिफा हूँ,

लोग बात करते है मिनी स्कर्ट का,
यहाँ मैं डायपर में भी महफूज नहीं हूँ,

इरादा तो नहीं है मेरा ख़ुद-कुशी का
मगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ,

आज एक आसिफा पर अत्याचार हुआ है,
और मै घर बैठी दूसरी आसिफा हूँ,

एक आसिफा का दर्द सुनते ही,

लगी ठेस सबको और दर्द बे-नाम सा हो गया,
बित गया जो वक़्त घड़ी भी बे-काम सा हो गया।

बलात्कार करने वालो से क्यों ये धर्म बड़ा होता है?
गुजरेगा जब खुद पर पता चलेगा तब ये शर्म खड़ा क्यों होता है ।।

कोई समझाओ उन मूर्खो को,

बलातकारियो का कोई धर्म और कोई ईमान नहीं होता,
राजनैतिक और धर्म में अंधो को दिमाग नहीं होता ।।

धुँदला धुँदला ही सही रस्ता भी दिखने लगा है,
गलत देख आज एक नौजवान भी चीखने लगा है ।।

जब शाशन प्रशाशन ही कुछ नहीं कर पा रहे मुझे इंसाफ दिलाने में,
कम से कम सामान्य आदमी कोशिश तो कर रही है दरिंदो को इंसान बनाने में ।।

शाषन प्रशाषन के हाथो में होता होगा दुनिया भर का ताकत,
पर आज भी वो अपंग ही केहलाते है ।।

सामान्य आदमी के पास वो ताकत तो नहीं,
मगर सामाजिक साधन का उपयोग कर सबको जागरूक करवाते है ।।

दो दिन की बात है ये सोच आप शांत ना बैठना,
ध्यान रहे खून गरम है तो गरम ही रखना ।।

~आशुतोष जमीदार दुबे

Wednesday 28 March 2018

विश्वास एक अन्धविश्वास

चल पड़ा बे खौफ क्योकि मुझे अपनों पर विश्वास था,
न था किसी से डर क्योकि मुझे अपनों का एहसास था ।

प्यार मिला इतना की आंसू मोहब्बतों में बट गयी,
देखते देखते आधी जिंदगी तो यु ही कट गयी ।

मंजिल दूर थी पर अपनों का साथ देख मेरे पैर अब भी चल रहे थे,
अचानक ठोकर खायी पर मेरे ही अपने मेरे आजु बाजु टहल रहे थे ।

में समझ ना पाया मेरे अपनों के होते हुवे ठोकर कैसे खाया मैंने,
क्या ये सच में अपने है या फिर धोके का ठोकर खाया मैंने ।

मुझे अब धीरे धीरे सब समझ आने लगा था,
अपनों से विश्वास कम और डर ज्यादा लगने लगा था ।

मंजिल अब भी दूर थी पर मेरे पैर आज अकेले चल रहे थे,
बिना साथ मेरे अपने मेरे आजु बाजु क्यों टहल रहे थे ।

इस उलझन में मै मेरे कदम फूक फूक कर चलाने लगा,
इस बार ठोकर नहीं खाई तो सब समझ आने लगा ।

लाखो तकलीफे सेह समझा तकलीफ देना तो घोर पाप है,
तकलीफ देने वाला और कोई नहीं तुम्हारे अपने ही आस्तीन का साप है ।

इस समाज को ही अपना माना था परिवारों को नहीं,
विश्वास शब्द पर विश्वास है पर अब लोगो पर नहीं ।

~ आशुतोष ज. दुबे

Sunday 11 March 2018

ये दूरियाँ

लिखने का तो मुझे बहोत मन करता है,
शब्द कही रूठ न जाये इसलिए दिल भी डरता है ।।

मैंने अक्सर आजमाया है,
मन की लिखू तो शब्द रुठ जाते है,
दिल की लखु तो अपने रूठ जाते है ।।

मन और दिल में बहोत उलझ सा गया हूँ मैं,
मुझे मोहब्बत हुआ है या बहक सा गया हूं मैं ।।

सोचा चलो इस पहेली को सुलझाया जाये,
मन की छोड़ो दिल से मोहब्बत को अपनाया जाए ।।

पता करने जा बैठा मैं एक दिन सागर के किनोरो पर,
पता चला तब नीला है बादल, नीला है पानी दोनों में मोहब्बत है इस कदर ।।

माना मैंने सागर और बादल में दूरियां होती है,
मगर किसने कहा दूरियों से मोहब्बत कम होती है ।।

कब मिलेंगे ये बादल और सागर ये पता करने एक बार फिर बैठ गया सागर के किनारे,

मगर,

सुब्ह आता हूँ यहाँ और शाम हो जाने के बाद,
लौट जाता हूँ मैं घर नाकाम हो जाने के बाद ।।

जब पता चला सागर और बादल मिल नहीं सकते कभी,
उसी वक्त मुझे दिल के दर्द का एहसास हुआ ।।

दिल तो मेरे पास भी है,
देरी से ही सही पर मुझे भी आभास हुआ ।।

आज तो दिल के दर्द पर हंस कर, दर्द का दिल दुखा दिया मैंने,
सागर और बादल का प्यार अजरामर है, ये सबको बता दिया मैंने ।।

लिखने को आगे और भी लिख सकता हूँ,
दिल और मन के चक्करो में बहक भी सकता हूँ ।।

~आशुतोष ज. दुबे

Friday 23 February 2018

नींद

नींद की परिभाषा भी अपने आप में कमाल की होती है,

किसी महान ने कहा है,
जो सोता है, वो खोता है ।।

मगर जहा तक मैंने देखा है,
जो पाता है,
वो नींद पाने को भी रोता है ।।

धुप बहोत कड़ी थी और मुझे सोना जरुरी था,
कही मिल जाये माँ का आँचल क्योकि मुझे रोना जरुरी था ।।

कही से कड़ी धूप में बादलों ने मुझपर परछाई लायी,
जैसे माँ का आँचल मुझे नींद देने को अपने आप चली आयी ।।

क्योकि सुना है,
इंसान नींद में अपने सारे गम गीले शिकवे भुल जाता है,
नींद में कोई खुद को राजा तो खुद को रंक पाता है ।।

अरसों बाद मैंने भी सुकून की नींद पायी थी,
माँ का आँचल खुद ही मेरे पास चल कर आई थी ।।

इंसान जागकर भी नए रिश्तों को नहीं समझ पाया है,
अक्सर मैंने सोये को रिश्ते निभाते देखा है ।।

~आशुतोष ज. दुबे

Wednesday 31 January 2018

मोहब्बत का हिसाब



जैसे रात सुबह का इंतज़ार नहीं करती,
वैसे प्यार जात किसी इंसान से नहीं डरती,

मोहब्बत तो होती ही ऐसा है,

मेरी कमजोरियों पर जब कोई हास्य करता है,
वो दुश्मन ही क्यों ना हो उससे मोहब्बत और बढ़ती है ।।

मोहब्बत में बिकने पर आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर,
ना बिकने का इरादा हो तो किम्मत और बढ़ती है ।।

चले गए थे किम्मत लगाने मोहब्बत का,
बदले में जिल्लत भरे नफरत ले आये।।

जब तक मुझे एहसास होता मोहब्बत का,
तब तक पता चला दिल तो वही दे आये।।

हम चले थे मोहब्बत का हिसाब लगाने,

उन्होंने कहा हिसाब तो चीज़ों का होता है,
दो में से एक निकालो एक ही बचता है ।।

मोहब्बत का हिसाब अलग होता है जनाब,
दो में से एक को भी निकालो तो एक भी नहीं बचता ।।

~आशुतोष ज दुबे !!