Sunday 11 March 2018

ये दूरियाँ

लिखने का तो मुझे बहोत मन करता है,
शब्द कही रूठ न जाये इसलिए दिल भी डरता है ।।

मैंने अक्सर आजमाया है,
मन की लिखू तो शब्द रुठ जाते है,
दिल की लखु तो अपने रूठ जाते है ।।

मन और दिल में बहोत उलझ सा गया हूँ मैं,
मुझे मोहब्बत हुआ है या बहक सा गया हूं मैं ।।

सोचा चलो इस पहेली को सुलझाया जाये,
मन की छोड़ो दिल से मोहब्बत को अपनाया जाए ।।

पता करने जा बैठा मैं एक दिन सागर के किनोरो पर,
पता चला तब नीला है बादल, नीला है पानी दोनों में मोहब्बत है इस कदर ।।

माना मैंने सागर और बादल में दूरियां होती है,
मगर किसने कहा दूरियों से मोहब्बत कम होती है ।।

कब मिलेंगे ये बादल और सागर ये पता करने एक बार फिर बैठ गया सागर के किनारे,

मगर,

सुब्ह आता हूँ यहाँ और शाम हो जाने के बाद,
लौट जाता हूँ मैं घर नाकाम हो जाने के बाद ।।

जब पता चला सागर और बादल मिल नहीं सकते कभी,
उसी वक्त मुझे दिल के दर्द का एहसास हुआ ।।

दिल तो मेरे पास भी है,
देरी से ही सही पर मुझे भी आभास हुआ ।।

आज तो दिल के दर्द पर हंस कर, दर्द का दिल दुखा दिया मैंने,
सागर और बादल का प्यार अजरामर है, ये सबको बता दिया मैंने ।।

लिखने को आगे और भी लिख सकता हूँ,
दिल और मन के चक्करो में बहक भी सकता हूँ ।।

~आशुतोष ज. दुबे

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