Tuesday 17 April 2018

घर बैठी दूसरी आसिफा

#justiceforaasifa
विश्वास टूट सा गया है मेरा,
क्योकि मैं घर में बैठी दूसरी आसिफा हूँ,

लोग बात करते है मिनी स्कर्ट का,
यहाँ मैं डायपर में भी महफूज नहीं हूँ,

इरादा तो नहीं है मेरा ख़ुद-कुशी का
मगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ,

आज एक आसिफा पर अत्याचार हुआ है,
और मै घर बैठी दूसरी आसिफा हूँ,

एक आसिफा का दर्द सुनते ही,

लगी ठेस सबको और दर्द बे-नाम सा हो गया,
बित गया जो वक़्त घड़ी भी बे-काम सा हो गया।

बलात्कार करने वालो से क्यों ये धर्म बड़ा होता है?
गुजरेगा जब खुद पर पता चलेगा तब ये शर्म खड़ा क्यों होता है ।।

कोई समझाओ उन मूर्खो को,

बलातकारियो का कोई धर्म और कोई ईमान नहीं होता,
राजनैतिक और धर्म में अंधो को दिमाग नहीं होता ।।

धुँदला धुँदला ही सही रस्ता भी दिखने लगा है,
गलत देख आज एक नौजवान भी चीखने लगा है ।।

जब शाशन प्रशाशन ही कुछ नहीं कर पा रहे मुझे इंसाफ दिलाने में,
कम से कम सामान्य आदमी कोशिश तो कर रही है दरिंदो को इंसान बनाने में ।।

शाषन प्रशाषन के हाथो में होता होगा दुनिया भर का ताकत,
पर आज भी वो अपंग ही केहलाते है ।।

सामान्य आदमी के पास वो ताकत तो नहीं,
मगर सामाजिक साधन का उपयोग कर सबको जागरूक करवाते है ।।

दो दिन की बात है ये सोच आप शांत ना बैठना,
ध्यान रहे खून गरम है तो गरम ही रखना ।।

~आशुतोष जमीदार दुबे