Friday 23 February 2018

नींद

नींद की परिभाषा भी अपने आप में कमाल की होती है,

किसी महान ने कहा है,
जो सोता है, वो खोता है ।।

मगर जहा तक मैंने देखा है,
जो पाता है,
वो नींद पाने को भी रोता है ।।

धुप बहोत कड़ी थी और मुझे सोना जरुरी था,
कही मिल जाये माँ का आँचल क्योकि मुझे रोना जरुरी था ।।

कही से कड़ी धूप में बादलों ने मुझपर परछाई लायी,
जैसे माँ का आँचल मुझे नींद देने को अपने आप चली आयी ।।

क्योकि सुना है,
इंसान नींद में अपने सारे गम गीले शिकवे भुल जाता है,
नींद में कोई खुद को राजा तो खुद को रंक पाता है ।।

अरसों बाद मैंने भी सुकून की नींद पायी थी,
माँ का आँचल खुद ही मेरे पास चल कर आई थी ।।

इंसान जागकर भी नए रिश्तों को नहीं समझ पाया है,
अक्सर मैंने सोये को रिश्ते निभाते देखा है ।।

~आशुतोष ज. दुबे