Friday 22 December 2017

भगवान है कहा रे तू?

ढूंढ तो लेते भगवान को हम भी कही ना कही,
पर लोगो की भीड़ इतनी थी की थक गए थे,

पर रोक दी तलाश हमने क्योंकि वो खोये नहीं हम ही भटक गए थे ।।
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खुदा को रिश्वत देकर सपनो को अलमारी मैं रख दिया हैं,

अपना भगवान खुद चुनने का जिंदगी ने शायद हमें हक़ दिया हैं ।।
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तुझे पता नहीं भगवान तुझको कितना तलाशा है मैंने,

तुझे कभी पत्थर में, तो कभी पानी में पाया है मैंने ।।
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भगवन का ख़्याल है मुझे,
धर्मो का हिसाब नहीं रखता..!!

दुवाएं दिल से निकलते है,
मैं गीता या पुराण नहीं रखता..!!
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ख़्वाब टूटे हैं
मगर हौसले अभी ज़िंदा हैंं

मैं वो शक्स हूँ,
जिससे भगवान तो रूठे है,
मागत मुश्किलें अभी शर्मिन्दा है।।
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सब काट रहे हैं यहां इक दूजे को,
लोग सभी दो धारी धनवान क्यूँ हैं?

सब को सबकी हर खबर चाहिए,
लोग चलते फिरते भगवान क्यूँ हैं ??
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जानकर भी अन्जाना बन रहा है इंसान,
उम्मीदों के लिए ही बना हुआ है ये भगवान् ।।
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कुदरत का करिश्मा तो देखो,

मौत ने दुनिया कोे कैसा कैसा समा दिखा डाला,

आखिर अंतिम में मरते ही इंसान को भगवान दिखा डाला ।।

~आशुतोष ज. दुबे